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महाशिवरात्रि की कहानी

यह कहानी हमें आस्था, भक्ति और निस्वार्थ भाव का महत्व सिखाती है।

महाशिवरात्रि की कहानी

Story


एक सुनहरा दिन था। खिली धूप, नीला आसमान, चहकते पंछी और ठंडी हवा, वातावरण को खुशनुमा बना रहे थे। पार्क में बड़े बरगद के पेड़ के नीचे कुछ बच्चे खेल रहे थे। उनकी मीठी बातें और खिलखिलाती हँसी सभी के मन को लुभा रही थी।


बच्चों ने देखा कि पास के मंदिर में दादाजी शिवलिंग पर जल चढ़ा रहे थे। जैसे ही वे मंदिर से बाहर आए, सभी बच्चे जोर से बोले, “दादाजी!”


"दादाजी, हमें एक कहानी सुनाइए ना!" आरव ने दादाजी का कुर्ता खींचते हुए कहा। बाकी बच्चे भी ताली बजाते हुए साथ में बोलने लगे।


"दादाजी, आज महाशिवरात्रि है, तो क्यों ना आप हमें महाशिवरात्रि की कहानी सुनाएँ। आज हमारे स्कूल की छुट्टी भी है, तो हमारे पास कहानी सुनने के लिए भरपूर समय है।


मोहन ने कहा, "हाँ दादाजी, हम इस त्योहार के बारे में सब कुछ जानना चाहते हैं।"


दादाजी मुस्कुराए और बोले, "ठीक है, बच्चों! आज मैं तुम्हें महाशिवरात्रि की कहानी सुनाऊँगा। महाशिवरात्रि, भगवान शिव को समर्पित एक विशेष रात है।"


बच्चे कहानी सुनने के लिए घास पर बैठ गए। दादाजी ने कहानी सुनानी शुरू की।

दादाजी बोले, "एक कहानी जो सबसे ज़्यादा मानी जाती है, वह यह है कि महाशिवरात्रि की रात भगवान शिव और देवी पार्वती की शादी हुई थी । देवी पार्वती भगवान शिव से शादी करना चाहती थीं। देवी पार्वती की कड़ी तपस्या के बाद भगवान शिव उनसे ने शादी के लिए तैयार हो गए। उनकी इस पवित्र शादी से पूरी दुनिया में शांति और संतुलन आया।"

लेकिन दादाजी, "महाशिवरात्रि पर हम सारी रात क्यों जागते हैं?" मीरा ने पूछा।


"यह तो बहुत अच्छा सवाल है!" दादाजी मुस्कुराते हुए बोले।


"सारी रात हम भगवान शिव से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें आशीर्वाद दें और सही रास्ता दिखाएँ, "दादाजी बोले। "ऐसा माना जाता है कि इस खास रात को भगवान शिव ने अपना दिव्य नृत्य, तांडव, किया था, जो जीवन के चक्र को दिखाता है। इस रात, भक्त जागरण करते हैं, भजन गाते हैं और शिवजी की पूजा करते हैं।"


बच्चे बहुत ध्यान से कहानी सुन रहे थे।


दादाजी ने आगे कहा, "महाशिवरात्रि से जुड़ी एक और कहानी है। क्या तुम समुद्र मंथन के बारे में जानते हो?"


बच्चों ने सिर हिलाया और उत्सुकता से आगे जानने के लिए तैयार हो गए।


दादाजी ने समझाया, "समुद्र मंथन के समय एक ज़हरीला विष, हलाहल निकला था। यह विष पूरी दुनिया को नष्ट कर सकता था। देवता और राक्षस घबराकर भगवान शिव के पास मदद के लिए पहुँचे। भगवान शिव ने प्रेम और करुणावश, इस संसार की रक्षा के लिए यह विष पीया और उसे अपने गले में ही रोक लिया। इस कारण उनका गला नीला हो गया, इसलिए भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है। महाशिवरात्रि भगवान शिव के इस महान बलिदान और उनके द्वारा दिखाए गए करुणा का भी उत्सव है।"



वाह!" आरव बोला। "शिवजी कितने बहादुर हैं!"


"बिलकुल," दादाजी ने कहा। "महाशिवरात्रि हमें आस्था, भक्ति और निस्वार्थ प्रेम का महत्व सिखाती है। जब आप लोगों को उपवास करते, ध्यान लगाते और शिवलिंग पर बेलपत्र और दूध चढ़ाते देखो, तो याद रखना कि यह सब विधियाँ भगवान शिव से जुड़ने और उनके गुणों को अपनाने के लिए हैं।"


दादाजी ने कहा, "क्या तुम जानते हो कि महाशिवरात्रि से जुड़ी एक और कहानी भी है?"


सारे बच्चे हैरानी से सिर हिलाने लगे।


ऋतिका बोली, "महाशिवरात्रि पर इतनी सारी कहानियाँ!"


दादाजी मुस्कुराए और बोले, "हाँ, बहुत सारी कहानियाँ हैं, और यह कहानी हमें शिवलिंग के प्रकट होने के बारे में बताती है।"


"एक बार जब भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा यह तय नहीं कर पा रहे थे कि उनमें से कौन अधिक शक्ति शाली  है, तब भगवान शिव एक अनंत ज्योति स्तंभ के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने विष्णुजी और ब्रह्माजी को उस स्तंभ की शुरुआत और अंत खोजने की चुनौती दी। भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु, कोई भी उस ज्योति स्तंभ की शुरुआत या अंत नहीं ढूँढ पाया। इससे पता चला कि भगवान शिव सबसे शक्तिशाली, निराकार, अनंत और समय से परे हैं।"


दादाजी ने सभी बच्चों से पूछा, "अब बताओ बच्चों, तुमने इस कहानी से क्या सीखा?"


सारे बच्चे एक साथ बोले, "शिवजी महान हैं, वह हमें बहादुर और दयालु बनाने की प्रेरणा देते हैं।"


बच्चों ने दादाजी को कहानी सुनाने के लिए धन्यवाद कहा और अपने-अपने घर की ओर चल दिए।

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शिव ध्यान मंत्र


स्रोत: शिव अपराध क्षमापन स्तोत्रम्


करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवण नयनजं वा मानसं वाऽपराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो।।


Karacharana kritam vaakkaayajam karmajam vaa
Shravana nayajam vaa maanasam vaaparaadham
Vihitamaavihitam vaa sarvametat kshamasva
Jaya jaya karunaabdhe Shrimahadeva Shambho


अर्थ

महादेव शंभु, मेरे सभी दोषों को क्षमा करें—चाहे वे मेरे हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कान, आँखों या मन से हुए हों। जो गलतियाँ मैंने जानी-अनजानी की हैं, उन्हें भी क्षमा करें। आपकी जय हो, हे करुणा के सागर!

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Story type: Spiritual

Age: 7+years; Class: 3+

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