नारद ने जाना माया का रहस्य
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच और भगवान का ज्ञान हमें सही राह पर चलने में मदद करता है।
Story
एक बार की बात है भगवान श्रीकृष्ण और नारद एक लंबी सैर के लिए निकले। वे कई गाँवों और शहरों से गुज़र कर एक बड़े से रेगिस्तान में पहुँचे। वहाँ दूर-दूर तक बस रेत ही रेत थी। श्रीकृष्ण और नारद इस बंजर रेगिस्तान में आगे बढ़ते जा रहे थे।
कड़ी धूप और गर्म हवा की वजह से श्रीकृष्ण और नारद को बहुत तेज़ प्यास लगी। श्रीकृष्ण ने नारद से एक गिलास पानी लाने को कहा। नारद श्रीकृष्ण का कहना मानकर पानी की तलाश में गए।
नारद कुछ दूर गए तो उन्हें एक मरूद्यान दिखाई दिया। वह हाथ में एक मटका लिए तुरंत उस ओर दौड़े। वह एक गाँव में पहुँच गए जहाँ कई कच्चे घर थे। नारद ने एक घर का दरवाज़ा खटखटाया, उस घर में से एक सुंदर स्त्री बाहर निकली।
नारद को वह स्त्री बहुत पसंद आई और उन्होंने उससे शादी करने का फैसला कर लिया। नारद श्रीकृष्ण और उनकी प्यास के बारे में पूरी तरह भूल गए।
नारद ने अपनी पत्नी के साथ खुशी-खुशी बारह साल बिताए। उन्हें तीन बच्चों का सुख भी मिला। तभी एक दिन उस गाँव में एक ज़ोर का तूफ़ान आया और बादलों के गरजने के साथ तेज़ बारिश हुई। लोगों के घरों में पानी घुस गया।
नारद अपनी पत्नी और बच्चों के साथ तुरंत एक सुरक्षित स्थान के लिए निकले। बाढ़ और तेज़ तूफ़ान के बीच नारद का अपनी पत्नी और बच्चों से साथ छूट गया। वे सब पानी की तेज़ धार के कारण अलग-अलग दिशा में बह चले।
पानी में बहुत देर बहने के बाद नारद एक सूखी बंजर ज़मीन पर पहुँचे। वह अपनी बुरी किस्मत को कोस रहे थे तभी उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी, “आध घंटा हो गया, तुम मेरे लिए पानी लाने गए थे, कहाँ है पानी।” नारद ने मुड़कर देखा तो वहाँ श्रीकृष्ण खड़े थे।
श्रीकृष्ण की बात सुनकर नारद हैरान होकर बोले, “क्या, आधा घंटा!” नारद के हिसाब से तो बारह साल बीत चुके थे। नारद समझ गए कि यह सब श्रीकृष्ण की माया थी जिसके कारण उन्हें झूठ भी सच जैसा लगा।
कई बार हमें जो अनुभव होते हैं वो झूठ होने के बावज़ूद भी सच लगते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम सच और भगवान को समझ नहीं पाते। अगर हमें सच और भगवान का ज्ञान हो जाएगा तो हम माया में नहीं फँसेंगे और हमेशा सही राह पर चलेंगे।
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स्रोत: भागवतं
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Story type: Spiritual, Mythological
Age: 7+years; Class: 3+