कृष्ण और फलवाली
यह कहानी हमें सिखाती है कि बिना कुछ मांगे अच्छे कर्म करना चाहिए।
Story
नन्हें कन्हैया को माखन मिश्री के साथ-साथ मीठे-रसीले फल खाना भी बहुत पसंद था। सुखिया फलवाली हर रोज़ गोकुल की गलियों में फल बेचने निकलती थी। एक दिन वह अपनी फलों की टोकरी लेकर कृष्णा के दरवाज़े पर पहुँची। वह थक कर वहाँ बैठ गई और बोली, “सुबह से शाम हो गई और मेरा एक भी फल नहीं बिका, घर में एक मुट्ठी अनाज भी नहीं है। हे! भगवान मेरी मदद करो।”
कान्हा वहीं खेल रहे थे। सुखिया की बात सुनकर वह उसके पास गए और बोले, “मैया ज़रा मुझे भी तो ये मीठे फल खिलाओ, ज़ोरों की भूख लगी है।”
“फल तो मैं दे दूँगी, पर तुम्हें इनकी कीमत चुकानी होगी, तुम्हें इन फलों के बदले में मुझे कुछ देना होगा,” सुखिया बोली।
“हाँ-हाँ, मैं अभी लेकर आता हूँ,” ऐसा कहकर कान्हा घर के अंदर गए।
एक बर्तन में गेहूँ रखा हुआ था। कान्हा अपनी दोनों मुट्ठियों में गेहूँ के दाने भर कर फलवाली को देने चल दिए।
उनकी छोटी मुट्ठी से गेहूँ के दाने गिरकर रास्ते में ही बिखर गए। जब वो सुखिया तक पहुँचे तब तक उनकी मुट्ठी में केवल चार ही गेहूँ के दाने बचे।
“यह लो मैया, मैं कीमत ले आया,” कान्हा बोले।
“अरे यह क्या! बस चार दाने”, सुखिया बोली।
“पर मैं तो मुट्ठी भर के दाने लाया था,” कान्हा बोले।
“अपने पीछे देखो सारे दाने तो तुमने नीचे गिरा दिए। चलो कोई बात नहीं, यह लो तुम ये सारे फल ले लो,” फलवाली बोली।
सुखिया ने कान्हा की भूख मिटाना ज़रूरी समझा भले ही उसको बदले में कुछ भी ना मिले। इसलिए उसने अपने सारे फल कान्हा को दे दिए।
उसने घर पहुँच कर देखा कि उसकी पूरी टोकरी हीरे- मोतियों से भरी हुई थी। फलवाली ने मन ही मन कान्हा को धन्यवाद दिया।
तो बच्चों देखा आपने, कैसे फलवाली ने निष्काम भाव से यानी बिना किसी इच्छा के अपने सारे फल कान्हा को दे दिए। इसी तरह हमें भी बिना किसी फल की इच्छा किए पूरी ईमानदारी से अपना काम करना चाहिए।
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Shloka
स्रोत: भगवद् गीता
भगवद् गीता में कृष्ण कहते हैं
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन
हमारा अधिकार सिर्फ अपने कर्म पर है उसके फल पर नहीं।
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Story type: Mythology, Motivational, Sweet
Age: 6+years; Class: 2+