सत्यकाम की कहानी
यह कहानी हमें सिखाती है कि इस संसार की हर चीज़ - धरती, आकाश, सूरज, चाँद, आग, हवा, पानी, सभी जीव-जंतु, यहाँ तक की हमारे शरीर के सभी अंगों और मन में भी भगवान हैं।
Story
छान्दोग्य उपनिषद् में एक दस साल के लड़के की कहानी है, जिसका नाम था सत्यकाम। सत्यकाम एक दिन ऋषि गौतम के आश्रम में पहुँचा। वह उनका शिष्य बनना चाहता था।
ऋषि ने उससे पूछा, “तुम्हारे पिता का नाम क्या है? तुम्हारा गोत्र क्या है?”
लड़के ने कहा, “मैं अपना गोत्र नहीं जानता। मेरी माता का नाम जबाला है, वह एक दासी थी। वह कई जगह अपनी सेवा देती थी और बहुत व्यस्त रहती थी, इस कारण उन्हें मेरे पिता का नाम और गोत्र नहीं पता। (सत्यकाम की माता के काम को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता, बच्चों की मानसिकता का ध्यान रखते हुए हमने यहाँ कुछ बदलाव किए हैं। )
उस लड़के ने निडर होकर सच बोला, इस बात से ऋषि बहुत खुश हुए और उन्होंने उसे अपना शिष्य बना लिया। ऋषि ने उसे एक नया नाम दिया - सत्यकाम जबाल।
एक दिन ऋषि गौतम ने सत्यकाम से कहा, “यह लो 400 गायें, इन्हें लेकर वन जाओ और जब ये 1000 हो जाएँ तो इन्हें लेकर आश्रम लौट आना।"
सत्यकाम, गुरु की बात मानकर, गायों को लेकर वन को चला गया। जंगल में एक सुंदर और साफ जगह देखकर, वह वहीं गायों के साथ रहने लगा।
सत्यकाम गायों को चराता, उनकी सेवा करता और जंगली जानवरों से उनकी रक्षा करता था।
कई साल बीत गए, एक दिन एक बैल, इंसान की आवाज में बोला, “हमारी संख्या 1000 हो चुकी है, अब तुम हमें लेकर आश्रम लौट सकते हो। तुमने हमारी बहुत सेवा की है, इसलिए मैं तुम्हें ज्ञान की कुछ बातें बताऊँगा।”
बैल के रूप में वायुदेव ने सत्यकाम को भगवान (सत्य) के ज्ञान का एक चौथाई ज्ञान दिया:
“ये चारों दिशाएँ, भगवान का ही अंश हैं। इससे आगे का ज्ञान तुम्हें अग्निदेव देंगे।”
सत्यकाम गायों को लेकर आश्रम की ओर चल दिया। रास्ते में उसने आग जलाकर अग्निदेव को बुलाया। अग्निदेव ने उसे बताया, “पृथ्वी, समुद्र, वायु और आकाश भगवान के अंश हैं।”
अगली सुबह जब सत्यकाम गायों को लेकर आगे बढ़ रहा था, एक हंस उड़ता हुआ उसके पास आया। हंस ने सत्यकाम को बताया, “सूर्य, चंद्र, अग्नि सभी भगवान के अंश हैं।” हंस से ज्ञान लेकर सत्यकाम अपने रास्ते पर आगे बढ़ा। वह गायों के साथ आगे बढ़ रहा था कि तभी एक जलमुर्गी उसके पास आई। जलमुर्गी ने उसे बताया, “आँख, कान, मन और प्राण सभी भगवान का अंश हैं।”
सत्यकाम, जलमुर्गी को धन्यवाद करके आगे बढ़ा और जल्दी ही गायों के साथ आश्रम पहुँच गया। आश्रम में गौतम ऋषि ने सत्यकाम को अंतिम ज्ञान दिया और उसे आश्रम की ज़िम्मेदारी देकर वहाँ से चले गए।
तो बच्चों, हम सबको भी सत्यकाम की तरह निडर होकर सच बोलना चाहिए और जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।
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स्रोत: छान्दोग्य उपनिषद्
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Story type: Motivational, Mythological
Age: 6+years; Class: 2+