चिड़ियों की कहानी
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें संतुष्ट और खुश रहना चाहिए।
Story
रवि आज बहुत खुश था। आज वो अपने सभी दोस्तों के साथ स्कूल पिकनिक पर जा रहा था। उसने कल रात ही माँ से कह दिया था कि वो लंच में पास्ता ले जाएगा। पर माँ किसी ज़रूरी काम में व्यस्त हो गई और पास्ता बनाने वाली बात भूल गई। माँ ने रवि को लंच में रोटी-सब्ज़ी दे दी।
स्कूल बस पिकनिक की जगह पर पहुँची। वह एक सुंदर घाटी थी जहाँ रंग-बिरंगे फूल और हरे-भरे पेड़ थे। बच्चों ने टीचर्स के साथ मिलकर कई खेल खेले, डांस किया, गाने गाए और बहुत मज़ा किया। थोड़ी ही देर में लंच का समय हो गया। सभी बच्चों ने अपने लंच बॉक्स खोले जिनमें बर्गर, पेस्ट्री, पिज़्ज़ा से लेकर चाट-पकोड़े और समोसे तक हर तरह की स्वादिष्ट चीज़ें मौज़ूद थी।
रवि ने भी उत्साह में अपना लंच-बॉक्स खोला। "क्या! रोटी-सब्ज़ी, पर मैंने तो माँ को पास्ता देने के लिए कहा था। मेरे सारे दोस्त इतनी टेस्टी चीज़े खा रहे हैं और मुझे ये बोरिंग रोटी-सब्ज़ी खानी पड़ेगी," यह सोच कर उसने लंच-बॉक्स वापस बैग में रख दिया।
रवि उदास हो कर टहल रहा था, तभी उसकी नज़र एक अमरूद के पेड़ पर गई। पेड़ पर दो चिड़ियाँ बैठी
थीं। एक चिड़िया बहुत जल्दबाज़ी में फल खा रही थी, वह मीठे फल को खाकर खुश हो जाती और खट्टे फल को खाकर परेशान। वहीं दूसरी चिड़िया चुप-चाप शांत बैठी थी।
रवि शांत बैठी चिड़िया के पास गया और बोला, "तुम फल क्यों नहीं खा रही हो?"
चिड़िया बोली, "मेरी फल खाने के कोई इच्छा नहीं है, मैं बिना कोई फल खाए भी खुश रहती हूँ। मैं हमेशा आनंद में रहती हूँ।"
"अगर तुम्हें खट्टा फल मिले तो क्या तुम दुखी नहीं होती," रवि ने चिड़िया से पूछा। "चाहे मीठा फल हो या खट्टा, मेरी खुशी में कोई कमी नहीं आती," चिड़िया ने जवाब दिया।
चिड़िया की बातें सुनकर, रवि की सोच बदल गई। उसने बड़े खुश होकर, माँ के हाथ की बनी रोटी-सब्ज़ी खाई और बहुत संतुष्ट हुआ। वह समझ गया कि हमें चाहे जो भी मिले हमें उसमें खुश रहना चाहिए।
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स्रोत: छांदोग्य उपनिषद
यो वै भूमा तत्सुखं नाल्पे सुखमस्ति
जो हमेशा रहता है वही परम आनंद है। जो थोड़े समय के लिए है वो आनंद नहीं है।
हमें अपने मन में एक संतोष का भाव रखते हुए अपने जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए।
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Story type: Adventure, Motivational
Age: 7+years; Class: 3+