भगवद् गीता एक विशेष पुस्तक है, जो हमें यह सिखाती है कि सही और खुशहाल जीवन कैसे जिया जाए। यह पुस्तक भगवान कृष्ण के द्वारा दिया गया एक मार्गदर्शन है, जिसमें सिखाया गया है कि सही काम कैसे करें, बहादुर कैसे बनें, और मुश्किल समय में शांत कैसे रहें। श्रीकृष्ण ने ये बातें अर्जुन को एक महत्वपूर्ण युद्ध के दौरान सिखाई थीं, और ये बातें हमारे लिए भी मददगार हैं! तो चलिए, इस शानदार कहानी को पढ़ते हैं और जानते हैं कि गीता इतनी विशेष क्यों है।
myNachiketa प्रस्तुत करता है बच्चों के लिए भगवद् गीता की कहानी
हजारों साल पहले, हस्तिनापुर में दो भाई रहते थे, जिनके नाम पांडु और धृतराष्ट्र थे। धृतराष्ट्र बड़े थे और पांडु छोटे। धृतराष्ट्र देख नहीं सकते थे, इसलिए पांडु राजा बने। पांडु के पाँच पुत्र थे—युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव। उन्हें पांडव कहा जाता था। धृतराष्ट्र के सौ पुत्र थे, जिन्हें कौरव कहा जाता था।
पांडु बहुत बीमार रहते थे और एक राजा की ज़िम्मेदारियाँ नहीं निभा पा रहे थे। इसलिए, धृतराष्ट्र नए राजा बने, भले ही वह देख नहीं सकते थे। कई सालों तक राज करने के बाद धृतराष्ट्र बूढ़े हो गए, और हस्तिनापुर के लिए एक नए राजा की ज़रूरत थी।
पांडवों में सबसे बड़े बेटे युधिष्ठिर थे इसलिए उन्हें राजा बनना था। लेकिन कौरवों का बड़ा भाई दुर्योधन, युधिष्ठिर से जलता था। उसने चालाकी से पांडवों को राज्य से निकाल दिया ताकि वह खुद राजा बन सके।
पांडवों ने राज्य में अपना हिस्सा माँगा, लेकिन दुर्योधन ने ज़मीन का एक टुकड़ा देने से भी मना कर दिया। अपने कर्तव्य का पालन करने और सत्य की रक्षा के लिए, पांडवों ने कौरवों से लड़ने का फैसला किया। इसे महाभारत के महान युद्ध के रूप में जाना जाता है जो कुरूक्षेत्र में हुआ था।
भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को सही रास्ता दिखाने के लिए उनके सारथी बने। जैसे ही युद्ध शुरू होने वाला था, अर्जुन बहुत परेशान हो गए और उन्होंने अपना धनुष और बाण रख दिया। अर्जुन मोह और संदेह से भर गए और उन्होंने युद्ध मैदान के दूसरी तरफ खड़े अपने रिश्तेदारों, गुरुजनों, दोस्तों और परिवार वालों के खिलाफ लड़ने से मना कर दिया। तभी भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को भगवद् गीता की शिक्षा दी, जिससे वह सही रास्ते पर चल सके। कृष्ण ने अर्जुन को सही और गलत का अंतर समझाया और अर्जुन को अपना कर्तव्य याद दिलाया।
अर्जुन के मन में कई सवाल थे, जैसे कि मुझे अपने रिश्तेदारों, गुरुजनों और परिवार वालों से क्यों लड़ना चाहिए? क्या युद्ध जरूरी है? अगर मैंने उन्हें हरा दिया, तो उनका क्या होगा? लोग मुझे बुरा कहेंगे, क्योंकि मैं अपने रिश्तेदारों से लड़ रहा हूँ।
इस तरह अर्जुन के मन में कई प्रश्न थे और श्री कृष्ण ने उनके सभी प्रश्नों का उत्तर दिया, जिससे उनके मन से सभी प्रकार का संदेह और भ्रम दूर हो गया। जवीन और सत्य के बारे में जो अमूल्य ज्ञान श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिया, वह भगवद् गीता में लिखा हुआ है।
श्रीकृष्ण ने समझाया कि शरीर नष्ट हो सकता है, लेकिन आत्मा हमेशा के लिए रहती है। आत्मा को नष्ट नहीं किया जा सकता, आत्मा न तो मरती है और न ही जन्म लेती है, इसे न जलाया जा सकता है, न गीला किया जा सकता है और न ही सुखाया जा सकता है। इसलिए, शरीर के जाने के बाद भी आत्मा रहती है क्योंकि वह शाश्वत है।
कृष्ण ने अर्जुन को समझाया, कि एक योद्धा का कर्तव्य है कि वह धर्म और सत्य की रक्षा के लिए हर तरह की बुराई से युद्ध करे।
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को निष्काम कर्म का भी ज्ञान दिया और उन्हें समझाया कि वह युद्ध के परिणाम या अपने कर्मों के फल के बारे में चिंता न करे। इसके बजाय सिर्फ अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा से करने पर ध्यान दें। कृष्ण ने सिखाया कि हर किसी को अपने काम को ईमानदारी से करना चाहिए, बिना उसके परिणाम की इच्छा किए।
इसी तरह, अर्जुन ने कृष्ण से कई प्रश्न पूछे, और कृष्ण ने उनके हर प्रश्न का उत्तर दिया। कृष्ण के उत्तर सुनने के बाद अर्जुन के सभी संदेह दूर हो गए।
इसके बाद अर्जुन ने तुरंत अपना धनुष और बाण उठाया और युद्ध के लिए तैयार हो गए। युद्ध में पांडवों को विजय प्राप्त हुई और युधिष्ठिर राजा बने।
तो, बच्चों, ठीक अर्जुन की तरह, हमें भी कभी-कभी कुछ चीज़ों को लेकर दुविधा आ सकती है। अपनी दुविधा को दूर करने के लिए हम भगवद् गीता पढ़ सकते हैं या अपने शिक्षकों और माता-पिता की मदद ले सकते हैं। हमें भी अर्जुन की तरह सवाल पूछने चाहिए, ताकि हमारी उलझनें दूर हों और हमें सही मार्गदर्शन मिल सके।
Get our Amazon's bestseller Colouring & Sticker Book
More such blogs
Resources
Comments