भगवद् गीता का ज्ञान
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ||
यह प्रसिद्ध श्लोक हिंदू धर्म के सबसे महान ग्रंथ भगवद् गीता से है, जिसे भगवान का गीत कहा गया है। गीता एक संवाद है जो महाभारत युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ था। अर्जुन पांडवों में तीसरे थे। पांडव और कौरव चचेरे भाई थे और दोनों को राज्य में अपना हिस्सा पाने के लिए एक दूसरे से युद्ध करना था।
अर्जुन अपने प्रियजनों से युद्ध करने को लेकर दुविधा में थे, क्योंकि उन्हें लगा कि युद्ध से केवल हानि होती है। इन विचारों से परेशान होकर उन्होंने अपने सारथी भगवान श्रीकृष्ण से मार्गदर्शन माँगा, जिन्होंने उन्हें उचित ज्ञान दिया।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को याद दिलाया कि एक योद्धा धर्म है सत्य के लिए युद्ध करना। श्रीकृष्ण ने अर्जुन के सवालों के उत्तर देकर उनके मन की सारी दुविधाएँ मिटाई और उन्हें उनके असली रूप का ज्ञान कराया। अर्जुन के सवाल और श्रीकृष्ण के जवाब भगवद् गीता में लिखित हैं।
भगवद् गीता का संकलन महर्षि वेदव्यास ने किया था। इस ग्रंथ में 18 अध्याय और कुल 700 श्लोक हैं। इन श्लोकों में श्रीकृष्ण ने सही जीवन जीने और भगवान को पाने के अलग-अलग मार्ग या तरीके बताएँ हैं जिन्हें योग कहा जाता है। प्रमुख मार्ग हैं ज्ञान योग (ज्ञान का मार्ग), भक्ति योग (भक्ति का मार्ग) और कर्म योग (कर्म का मार्ग)।
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भगवद् गीता की प्रमुख शिक्षाएँ, जो भगवान तक पहुँचने के प्रमुख तरीकों की ओर संकेत करती हैं।
अपने सच्चे रूप का ज्ञान
श्रीकृष्ण कहते हैं कि हम अपने शरीर से कहीं अधिक हैं; हम आत्मा हैं, जो शाश्वत है। आत्मा का विनाश नहीं होता, यह अजर-अमर है। आत्मा अलग-अलग रूपों को धारण करती है, लेकिन उसक मूल रूप हमेशा एक ही रहता है।
जैसे पानी ठोस, तरल या गैस रूप में उपलब्ध होता है लेकिन उसका मूल रूप एक ही रहता है, उसी तरह सभी जीव अलग-अलग दिखाई देने के बावजूद मूलरूप से एक ही है।
2. कर्तव्य का पालन (निष्काम कर्म)
हमारा अधिकार केवल अपने कर्म पर है, उसके फल पर नहीं। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि योद्धा होने के नाते उनका कर्तव्य है परिणाम की चिंता किए बिना धर्म की रक्षा के लिए लड़ना।
बच्चों का कर्तव्य है कि वे अच्छी से पढ़ाई करें और खूब खेलें। उन्हें अपने शिक्षकों और माता-पिता का आदर करना चाहिए। अपना कर्तव्य पूरा करने के बदले बच्चों को कोई उपहार या इनाम नहीं माँगना चाहिए।
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जब हम हर स्थिति में शांत रहते हैं और अपने कर्मों के फल की चिंता नहीं करते, तो हम पर उस काम के परिणाम से मिलने वाली खुशी या दुख का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
हम छात्रों को भी परीक्षा या खेल प्रतियोगिताओं में कभी सफलता मिलती है तो कभी असफलता। लेकिन अगर हम श्रीकृष्ण की इस शिक्षा को याद रखें तो हम हर स्थिति में खुश रह सकते हैं।
4. सही ज्ञान से ही सही कर्म संभव है
भगवद् गीता में श्रीकृष्ण ने सही ज्ञान और सच्चे गुरु का महत्व समझाया है, जिससे हमें सही कर्म का अर्थ समझ में आता है। केवल सच्चा ज्ञान हमें यह शक्ति देता है कि हम पूरी तरह से कर्म में डूबे रहते हुए भी उसके परिणाम से अलग रहें।
जैसे, अगर हम किसी खेल को केवल जीतने की इच्छा से खेलते हैं तो उसका आनंद नहीं ले पाएँगे। लेकिन जब हम परिणाम की चिंता छोड़ देते हैं तो खेल का भरपूर आनंद ले सकते हैं।
5. ध्यान : भगवान को अनुभव करने का तरीका
ध्यान, मन को इधर-उधर के विचारों से हटाकर भगवान पर केंद्रित करने का अभ्यास है। श्रीकृष्ण के अनुसार ध्यान भगवान को अपने अंदर अनुभव करने का मार्ग है।
ध्यान छात्रों के लिए बहुत लाभदायक है, क्योंकि इससे वे अपने विचारों पर नियंत्रण पा सकते हैं और अपने लक्ष्यों को स्पष्टता और शांति के साथ प्राप्त कर सकते हैं।
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6. भक्ति : भगवान के लिए प्रेम
भगवद् गीता के अनुसार, भक्ति या प्रेम, भगवान तक पहुँचने का एक मार्ग है। सच्चे भक्त का एकमात्र लक्ष्य होता है अपने भगवान से जुड़ना। वे अपना प्रेम, भगवान की भक्ति के माध्यम से प्रकट करते हैं और सभी प्राणियों में भगवान को देखते हैं।
भगवान पर विश्वास रखने से हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति मिलती है, और हम अपने कर्तव्यों को ईमानदारी और लगन से निभा पाते हैं।
सार
भगवान श्रीकृष्ण से भगवद् गीता का यह विशेष ज्ञान पाने के बाद अर्जुन की दुविधा दूर हुई और उन्हें अपना कर्तव्य निभाने के लिए साहस और ज्ञान मिला।
गीता की यह ज्ञान हर व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है, जो हमें एक सार्थक और सही जीवन जीना सिखाती है। भगवद् गीता का अनमोल ज्ञान हमारे मन के अंधकार को दूर करने वाल एक प्रकाश है, जो हमें अपने अंदर की दिव्यता को देखने में मदद करता है।
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