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Shloka
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
Om Tryambakam Yajamahe Sugandhim Pushtivardhanam
Urvarukamiva Bandhanan Mrityor Mukshiya Maamritat
हम तीन नेत्रों वाले, भगवान शिव की पूजा करते हैं, जो सभी प्राणियों का पालन-पोषण करते हैं। जैसे पका हुआ खीरा, बेल से आसानी से अलग हो जाता है, वैसे ही हम भी संसार के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करें।
कुंभ मेला दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है, जो भारत में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह हिंदू पौराणिक कथाओं से जुड़ा है और इसका बहुत आध्यात्मिक महत्व है। इस मेले में दुनिया भर से लाखों भक्त और साधु-संत बड़े ही उत्साह से भाग लेते हैं।
myNachiketa बच्चों के लिए कुंभ मेले की महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत करता है जो उन्हें कुंभ मेले के सांस्कृतिक और अध्यात्मिक महत्व को समझने में मदद करेगा।
कुंभ मेला : अध्यात्म और परंपरा का उत्सव
"कुंभ" शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका मतलब है "घड़ा" या "मटका।" "कुंभ" शब्द समृद्धि, दिव्य ज्ञान और आशीर्वाद के पवित्र पात्र का भी प्रतीक भी है।
हिंदू पौराणिक कथाओं में कुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन की कहानी से है जिसके अनुसार देवता और राक्षस अमर होने के लिए अमृत कुंभ के लिए युद्ध करते हैं।
समुद्र मंथन के दौरान अमर होने के लिए एक अमृत से भरा कुंभ (घड़ा) उत्पन्न हुआ था। इसे पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध हुआ। इस लड़ाई के दौरान अमृत की कुछ बूंदें चार पवित्र जगहों पर गिरीं : प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। ये स्थान पवित्र बन गए और भगवान को समर्पित हो गए, इन जगहों को देवभूमि कहा जाता है। इन स्थानों की दिव्यता और अमरता को ग्रहण करने के लिए इन जगहों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
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कुंभ मेला हिंदुओं के लिए एक आध्यात्मिक अवसर है, जो अच्छाई की बुराई पर जीत और अमरता व पवित्रता का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि कुंभ मेले में पवित्र नदियों में स्नान करने से आत्मा शुद्ध होती है और पापों से मुक्ति मिलती है।
कुंभ मेला हर 12 साल में क्यों मनाया जाता है?
कुंभ मेले का 12 साल का चक्र बृहस्पति ग्रह की सूर्य के चारों ओर घूमने की गति पर आधारित होता है। बृहस्पति को सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में 12 साल लगते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जब बृहस्पति कुंभ राशि में आता है और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तब कुंभ मेला मनाया जाता है। ग्रहों की यह विशेष स्थिति आत्म-ज्ञान और भगवान का आशीर्वाद पाने के लिए शुभ समय माना जाता है।
महाकुंभ क्या है?
महाकुंभ; कुंभ मेला का एक खास और बड़ा रूप है, जो हर 144 साल में एक बार (12 कुंभ मेलों के बाद) प्रयागराज में मनाया जाता है। यह सभी कुंभ मेलों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह उस समय मनाया जाता है जब ग्रहों की सबसे खास और शुभ दशा बनती है। महाकुंभ को सबसे बड़ा आध्यात्मिक अवसर माना जाता है, जो मोक्ष (मुक्ति) और भगवान का आशीर्वाद पाने के लिए अनमोल माना जाता है।
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कैसे मनाया जाता है कुंभ?
कुंभ मेला कई हफ्तों तक चलता है और इसमें कई प्रकार की पूजा, धार्मिक समारोह और सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती हैं।
शाही स्नान : मुख्य आकर्षण गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम में होने वाला पवित्र स्नान है। सबसे पहले अलग-अलग ऋषियों और योगियों के समूह जिन्हें अखाड़ा कहते हैं शाही स्नान करते हैं। इनमें भी सबसे पहले नागा साधु स्नान करते हैं। अखाड़ों के स्नान के बाद अन्य लोग स्नान करते हैं।
धार्मिक चर्चाएँ : संत और गुरु धर्मिक विषयों पर चर्चा और सत्संग आयोजित करते हैं जिसके द्वारा वे धर्मिक संदेश आम लोगों तक पहुँचाते हैं।
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सांस्कृतिक कार्यक्रम: इस आयोजन में पारंपरिक संगीत, नृत्य और लोक कला प्रदर्शन होते हैं, जो भारत की विविध सांस्कृतिक धरोहर को दिखाते हैं।
सामूहिक सभाएँ: लाखों भक्त मेला स्थल पर शिविर लगाते हैं, जिससे वहाँ खुशी और आध्यात्मिक माहौल बनता है।
तीर्थयात्रा और प्रसाद: भक्त देवताओं का सम्मान करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए अनुष्ठान और प्रार्थना करते हैं।
निष्कर्ष
कुंभ मेला केवल एक त्योहार नहीं है बल्कि एक महान आध्यात्मिक यात्रा और भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का उत्सव है। यह हमें सच्चाई और करुणा जैसे मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। यह समय है अपने मन और विचारों का मंथन करने का ताकि हम ज्ञान रुपी अमृत प्राप्त कर सकें। चाहे आप एक तीर्थयात्री हों या एक पर्यटक, कुंभ मेला आपको भारत की आध्यात्मिक आत्मा की एक अनोखी झलक दिखाता है।
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