मीराबाई 16वीं सदी की एक कवयित्री और भगवान कृष्ण की सच्ची भक्त थीं। उनका जन्म एक राज परिवार में हुआ था। उन्होंने धन से ज़्यादा प्रेम और भक्ति को महत्व दिया। मीराबाई ने भगवान कृष्ण के लिए अपनी भक्ति को सुंदर भजनों के माध्यम से व्यक्त किया। उनकी कविताएँ और पद बहुत ही सरल भाषा में भक्ति, प्रेम और समर्पण के महत्व को दर्शाते हैं। मीराबाई हर तरह चुनौती का सामना करते हुए हमेशा भक्ति और सच की राह पर चलीं। मीराबाई के जीवन से हमें हर हालत में अपने संकल्प पर अडिग रहने के प्रेरणा मिलती है।
myNachiketa प्रस्तुत करता है बच्चों के लिए मीराबाई के 5 प्रमुख पद, उनके सरल अर्थों के साथ। ये पद हमारे मन में भगवान के लिए प्रेम और भक्ति को जागते हैं।
1. पद
बसो मेरे नैनन में नंदलाल। मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, अरुण तिलक दिये भाल।
मोहनी मूरत, साँवरी सूरत, नैना बने बिसाल।
अधर सुधारस मुरली राजत, उर बैजंती माल॥
छुद्रघंटिका कटितट सोभित, नूपुर सबद रसाल।
मीरां प्रभु संतन सुखदाई भगत बछल गोपाल॥
भावार्थ
इस पद में मीराबाई श्रीकृष्ण से प्रार्थना करती हैं कि उन्हें हमेशा कृष्ण का ही ध्यान रहे। वह के सूंदर रूप का वर्णन करती हैं। वह कहती है की कृष्ण की बड़ी-बड़ी आँखें और साँवली सूरत सबका मन मोह लेती है। वह मधुर बाँसुरी बजाते हैं वैजयंती माला पहनते हैं। कृष्ण के कमर के गिर्द छोटी-छोटी घंटियाँ सजी हुई हैं और पैरों में बँधे हुए घुँघरू से मीठी आवाज़ आती है। मीराबाई कहती हैं कि कृष्ण आप संतों के सुख देते हो और अपने भक्तों से प्रेम करते हो।
2.पद
हरि बिन कूण गति मेरी।
तुम मेरे प्रतिकूल कहिए मैं रावरी चेरी॥
आदि अंत निज नाँव तेरो हीया में फेरी।
बेरी-बेरी पुकारि कहूँ प्रभु आरति है तेरी॥
यौ संसार विकार सागर-बीच में घेरी।
नाव फाटी प्रभु पालि बाँधो बूड़त है बेरी॥
विरहणि पिव की बाट जोवै राखि ल्यौ नेरी।
दासि मीरा राम रटन है मैं सरण हूँ तेरी॥
भावार्थ
इस पद में मीराबाई भगवान के लिए अपना गहरा प्रेम दर्शाती हैं। वह कहती हैं कि भगवान से दूर होकर मेरा भला नहीं हो सकता। मैं हमेशा उनकी ही सेवा करुँगी और अपने मन में हमेशा उनका ही नाम लूँगी। मीराबाई कहती हैं कि यह दुनिया बुराइयों का एक समुद्र है जिसमें मेरे जीवन की नाव घिरी हुई है। वह भगवान से प्रार्थना करती हैं कि हे प्रभु! मेरी नाव टूटी हुई है तो तुम इसमें पाल लगा दो, नहीं तो मैं डूब जाऊँगी। मीराबाई भगवान से विनती करती हैं की वह उन्हें दर्शन दें और अपनी शरण में लें।
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3.पद
मैंने नाम रतन धन पायौ।
बसत अमोलक दी मेरे सतगुरु करि किरपा अपणायो॥
जनम जनम की पूँजी पाई जग मैं सवै खोवायो।
खरचै नहिं कोई चोर न लेवे दिन-दिन बढ़त सवायो॥
सत की नाँव खेवटिया सतगुरु भवसागर तारि आयो।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर हरुखि हरुखि जस गयो॥
भावार्थ
इस पद में मीराबाई बड़े हर्ष के साथ यह घोषणा कर रही हैं मुझे दुनिया का सबसे बड़ा धन मिल गया है जो है कृष्ण की भक्ति, अब उन्हें किसी भी चीज़ के खो जाने का दर नहीं। यह ऐसा धन है जो खर्च नहीं होता जिसे कोई चोर चोरी नहीं कर सकता और जो हरदिन बढ़ता ही जाता है। मीराबाई अपने गुरु का धन्यवाद करती हैं जिनकी कृपा से उन्होंने भगवान को पा लिया। मीराबाई खुशी से अपने प्रभु, श्रीकृष्ण के गुण गाती है।
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4.पद
मैं गिरधर के घर जाऊँ।
गिरधर म्हाँरो साँचो प्रीतम
देखत रूप लुभाऊँ॥
रैण पड़ै तब ही उठ जाऊँ
भोर भये उठ आऊँ।
रैण दिना वा के संग खेलूँ
ज्यूँ त्यूँ ताही रिझाऊँ॥
जो पहिरावै सोई पहिरूँ
जो दे सोई खाऊँ।
मेरी उण की प्रीत पुराणी
उण बिन पल न रहाऊँ॥
जहाँ बैठावें तितही बैठूँ
बेचै तो बिक जाऊँ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर
बार-बार बलि जाऊँ॥
भावार्थ
इस पद में मीराबाई कृष्ण को अपना मित्र मानती है जिनसे वह बहुत प्रेम करती हैं। मीराबाई कहती है कि मैं कृष्ण के घर जाती हूँ और उनके साथ खेलती हूँ। वह जो पहनने के लिए कहते हैं वही पहनती हूँ। जो खाने के लिए देते हैं वही खाती हूँ, मेरी और उनकी दोस्ती बहुत पुरानी और गहरी है। मैं उनकी हर बात मानती हूँ क्योंकि मैं अपने प्रभु श्रीकृष्ण से बहुत प्रेम करती हूँ।
5.पद
कोई कहियौ रे प्रभु आवन की।
आवन की मन भावन की॥
आप न आवै लिख नहिं भेजै
बाण पड़ी ललुचावन की।
ए दोउ नैण कहयो नहीं मानै
नदिया बहैं जैसे सावन की॥
कहा करूँ कछु नहिं बस मेरो
पाँख नहीं उड़ जावन की।
मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे
चेरी भई हूँ तेरे दाँवन की॥
भावार्थ
इस पद में मीराबाई लोगों से यह विनती कर रही हैं कि कोई तो उन्हें उनके भगवान के आने की खबर दे दे। वह फिर दुखी मन से कहती हैं कि ना तो वह खुद आते हैं और ना ही अपने आने का कोई सन्देश भेजते हैं। बस दूर से मुझे ललचाते रहते हैं। मेरी ये दोनों आँखें भी मेरा कहा नहीं मानतीं और कृष्ण की याद में हमेशा आँसू बहाती रहती हैं। वह सोचती हैं कि अगर उनके पास पंख होते तो उड़कर अपने प्रभु के पास पहुँच जाती। एकबार फिर मीराबाई श्रीकृष्ण से प्रार्थना करती हैं कि वह उन्हें और ना बहलाएँ उन्हें जल्दी ही अपने दर्शन दें।
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