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निर्वाण षट्कम् छह श्लोकों का एक संग्रह है, जिसकी रचना महान भारतीय दार्शनिक और संत आदि शंकराचार्य ने की थी। ये श्लोक एक-एक कर यह स्पष्ट करते हैं कि हम क्या नहीं हैं, और अंततः हमें अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानने में सहायता करते हैं। यह अमूल्य ज्ञान हमें हमारी सच्ची पहचान कर, परमात्मा से जुड़ने की प्रेरणा देता है।
myNachiketa प्रस्तुत करता है निर्वाण षट्कम् के श्लोक सरल अर्थ और संदेश के साथ।
आइए, इस दिव्य ज्ञान के सागर में डुबकी लगाएँ और सत्य एवं आत्मज्ञान के मोती चुने।
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Shloka 1
मनो बुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहम्, न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे।
न च व्योम भूमिर् न तेजो न वायुः, चिदानन्द रूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्॥ १॥
Mano buddhy ahankara chittani naham Na cha shrotra jihve na cha ghrana netre
Na cha vyoma bhumir na tejo na vayuh Chidananda rupah shivoham shivoham
अर्थ
मैं न मन हूँ, न बुद्धि, न अहंकार, न स्मृति,न ही
मैं कान, जीभ, नाक, या नेत्र हूँ।
मैं न आकाश, न पृथ्वी, न अग्नि, न वायु;
मैं शुद्ध चैतन्य और आनंदस्वरूप हूँ—मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ।
संदेश
यह श्लोक हमें अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानने और शरीर से परे जाने की प्रेरणा देता है।
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Shloka 2
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायुः, न वा सप्तधातुः न वा पञ्चकोशः।
न वाक् पाणि पादौ न चोपस्थ पायुः, चिदानन्द रूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्॥ २॥
Na cha prana sangno na vai pancha vayuh Na va sapta dhatuh na va pancha koshah
Na vak pani padau na chopastha payuh Chidananda rupah shivoham shivoham
अर्थ
मैं न साँस हूँ, न पंच प्राणवायु,
न ही सात धातु और न पंचकोश।
मैं न वाणी हूँ, न हाथ, न पैर, न ही कोई अन्य इंद्रिय।
मैं शुद्ध आनंदस्वरुप चेतना --- मैं शिव हूँ, शिव हूँ।
संदेश
हम न तो शरीर का हिस्सा हैं, न ही पंचतत्व जिनसे हमारा शरीर बना है। हम शुद्ध और दिव्य चेतना हैं।
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Shloka 3
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ, मदो नैव मे नैव मात्सर्य भावः।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः, चिदानन्द रूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्॥ ३॥
Na me dvesha ragau na me lobha mohau Mado naiva me naiva matsarya bhavah
Na dharmo na chartho na kamo na mokshah Chidananda rupah shivoham shivoham
अर्थ
न मुझमें शत्रुता है, न लगाव, न लोभ, न मोह,
न ही अहंकार है, न ही ईर्ष्या।
मैं धर्म, धन, इच्छा और मोक्ष से परे हूँ।
मैं शुद्ध आनंदस्वरुप चेतना हूँ --- मैं शिव हूँ, शिव हूँ।
संदेश यह श्लोक इस बात पर ज़ोर देता है कि सभी प्रकार की इच्छाओं से मुक्त होकर अपने वास्तविक स्वरूप तक पहुँचना ही जीवन का लक्ष्य है।
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Shloka 4
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखम्,न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञाः।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता,चिदानन्द रूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्॥ ४॥
Na punyam na papam na saukhyam na duhkham Na mantro na tirtham na veda na yajnah
Aham bhojanam naiva bhojyam na bhokta Chidananda rupah shivoham shivoham
अर्थ
मैं न पुण्य हूँ, न पाप, न सुख हूँ, न दुख।
मैं न मंत्र हूँ, न तीर्थ, न वेद, न यज्ञ।
मैं न अनुभव हूँ, न अनुभव का विषय, न ही अनुभव करने वाला।
मैं शुद्ध आनंदस्वरुप चेतना हूँ --- मैं शिव हूँ, शिव हूँ।
संदेश
यह श्लोक दर्शाता है कि हमारी सभी भावनाएँ और अनुभव अस्थाई हैं, लेकिन हमारा वास्तविक रूप हमारे अनुभवों से ऊपर है।
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Shloka 5
न मे मृत्यु शंका न मे जाति भेदः, पिता नैव मे नैव माता न जन्म:।
न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः, चिदानन्द रूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्॥ ५॥
Na me mrityu shanka na me jati bhedah Pita naiva me naiva mata na janma
Na bandhur na mitram gururnaiva shishyah Chidananda rupah shivoham shivoham
अर्थ
मुझे न मृत्यु का भय है, न जाति का भेद।
न मेरा कोई पिता है, न माता, न ही मेरा जन्म हुआ।
न मेरा कोई संबंधी है, न मित्र, न गुरु, न शिष्य।
मैं शुद्ध आनंदस्वरुप चेतना हूँ --- मैं शिव हूँ, शिव हूँ।
संदेश हमें अपने संबंधों का सम्मान करना चाहिए, लेकिन स्वयं को उनसे जोड़कर नहीं देखना चाहिए, क्योंकि हम इन संबंधों से कहीं अधिक हैं।
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Shloka 6
अहं निर्विकल्पो निराकार रूपः, विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्।
न चासंगतं नैव मुक्तिर्न मेयः, चिदानन्द रूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्॥ ६॥
Aham nirvikalpo nirakara rupah Vibhut vachcha sarvatra sarvendriyanam
Na chasangatam naiva muktirna meyah Chidananda rupah shivoham shivoham
अर्थ
मैं निराकार हूँ और सभी विकल्पों से परे हूँ।
मैं हर जगह हूँ और सभी इंद्रियों में विद्यमान हूँ।
मैं न किसी से बंधा हूँ, न ही मुक्त हूँ।
मैं शुद्ध आनंदस्वरुप चेतना हूँ --- मैं शिव हूँ, शिव हूँ।
संदेश
हम भी भगवान शिव के समान शुद्ध और मुक्त चैतना हैं। सच्चे ज्ञान और समर्पण से हम अपने वास्तविक स्वरूप का अनुभव कर सकते हैं।
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