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रामायण की 8 चौपाई


रामायण की 8 चौपाई

रामायण एक प्रचीन पुस्तक है जिसे ऋषि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में लिखा था। उन्होंने इसमें भगवान राम के प्रेरणादायक जीवन के बारे में बताया है। गोस्वामी तुलसीदास ने अवधी भाषा में रामकथा की रचना की जिसे रामचरितमानस कहा जाता है रामचरितमानस में 7 कांड हैं और 4608 चौपाइयाँ हैं।


myNachiketa प्रस्तुत करता है बच्चों के लिए रामायण की 8 चौपाई, सरल अर्थ और प्रभावशाली संदेश के साथ जो भगवान राम के प्रेरणादायक और दिव्य चरित्र का गुणगान करते हैं। रामायण की चौपाइयाँ हमें भगवान राम के समान सत्य और अच्छाई से भरपूर आदर्श जीवन जीना सिखाती हैं।


रामायण की चौपाई 1

1. चौपाई

एक अनीह अरूप अनामा। अज सच्चिदानंद पर धामा॥

ब्यापक बिस्वरूप भगवाना। तेहिं धरि देह चरित कृत नाना॥


अर्थ 

रामायण की यह चौपाई कहती है कि भगवान वह हैं, जिन्हें किसी चीज़ की इच्छा नहीं होती, जिनका कोई रूप और नाम नहीं है, जिनका कभी जन्म नहीं हुआ, वह सच्चिदानन्द रूप हैं और परम सत्य हैं और पूरा संसार उन्हीं के रूप का विस्तार है, उन्हीं एक भगवान ने दिव्य शरीर धारण करके अनेक प्रकार की लीला की है। 


संदेश

बच्चों, जिस तरह भगवान बिना कुछ माँगे हमेशा खुश रहते हैं उसी तरह हमें भी अपने माता-पिता से बार-बार नई-नई चीज़ें नहीं माँगनी चाहिए और जो भी वे प्रेम से दें उसमें खुश रहना चाहिए।

 
रामायण की चौपाई 2

2. चौपाई

पुनि मन बचन कर्म रघुनायक। चरन कमल बंदउँ सब लायक॥राजीवनयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक॥


अर्थ 

रामायण की इस चौपाई में तुलसीदासजी, मन, वचन और कर्म से कमलनयन, धनुष-बाणधारी, भक्तों के दुख मिटा कर उन्हें सुख देने वाले भगवान श्रीराम की वन्दना करते हैं। 


संदेश

हमें भगवान का हमेशा आभार मानना चाहिए क्योंकि वो हमारी परेशानियों को दूर करते हैं और हमें खुश रखते हैं। 

 
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रामायण की चौपाई 3

3. चौपाई

हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥

रामचंद्र के चरित सुहाए। कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥


अर्थ 

रामायण की यह चौपाई कहती है कि भगवान अनंत हैं उनकी ना कोई शुरुआत है न अंत और उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। भगवान के सुंदर चरित्र का वर्णन करने के लिए जितना भी समय मिले कम है।


संदेश

बच्चों हमें जितना ज्ञान मिले कम है क्योंकि ज्ञान की कोई सीमा नहीं। इसलिए हमें अधिक से अधिक ज्ञान पाने की कोशिश करनी चाहिए।

 
रामायण की चौपाई 4

4. चौपाई

उभय अगम जुग सुगम नाम तें। कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें॥

ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी। सत चेतन घन आनँद रासी॥


 अर्थ 

रामायण की यह चौपाई कहती है कि भगवान के साकार और निराकार रूप को जानना आसान नहीं हैं, पर उनके नाम का जप करने से दोनों रूपों को आसानी से जाना जा सकता हैं, इसी कारण तुलसीदासजी ने, भगवान के नाम को निराकार और सकार भगवान से बड़ा कहा है, लेकिन भगवान एक ही है जो हर जगह है, कभी न मिटने वाला है। वह सत्, चित् और आनंद है।


संदेश

भगवान एक ही हैं पर खुद को अलग-अलग रूप में दिखाते हैं। उनको बार-बार याद कर के हम उनके असली रूप को जान सकते हैं।

 
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रामायण की चौपाई 5

5. चौपाई

सत्यसंध पालक श्रुति सेतू। राम जनमु जग मंगल हेतु॥

गुर पितु मातु बचन अनुसारी। खल दलु दलन देव हितकारी॥


अर्थ  

रामायण की इस चौपाई में तुलसीदासजी कहते हैं कि भगवान सच की राह पर चलने वाले और सही नियमों का पालन करने वाले हैं। श्रीराम के रूप में उनका जन्म लोगों की भलाई के लिए हुआ है। वह गुरु, पिता और माता की आज्ञा का पालन करने वाले, बुरे लोगों सज़ा देने वाले और अच्छे लोगों की भलाई करने वाले हैं। 


संदेश

हमें भगवान राम की तरह हमेशा सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए और अपने शिक्षकों और माता-पिता का कहना मानना चाहिए। 

 
रामायण की चौपाई 6

6. चौपाई

जा पर कृपा राम की होई। ता पर कृपा करहिं सब कोई॥

जिनके कपट, दम्भ नहिं माया। तिनके हृदय बसहु रघुराया॥


अर्थ 

रामायण की इस चौपाई में तुलसीदासजी कहते हैं कि जिन पर भगवान राम की कृपा होती है, उन्हें कभी कोई दुख नहीं होता। जिनके मन में झूठ और छल नहीं होता, उनके दिल में भगवान रहते हैं।

संदेश

अगर हम हमेशा सच की राह पर चलेंगे और दूसरों का भला करेंगे, तो भगवान को ज़रूर पा लेंगे।

 
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रामायण की चौपाई 7

7. चौपाई

अगुण सगुण गुण मंदिर सुंदर। भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर॥ 

काम क्रोध मद गज पंचानन। बसहु निरंतर जन मन कानन॥


अर्थ  

रामायण की इस चौपाई में तुलसीदासजी भगवान राम के गुणों की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि आप साकार और निराकार दोनों है। आपका तेज सूर्य के प्रकाश के समान अज्ञान रूपी अंधकार का नाश करता है। आप हमेशा ही अपने भक्तों  के मन में रहते हैं।


संदेश

हमें सच्चे ज्ञान से अपने अंदर भगवान समान गुणों का विकास करना चाहिए।

 
रामायण की चौपाई 8

8. चौपाई

निज गुन श्रवन सुनत सकुचाहीं। पर गुन सुनत अधिक हरषाहीं॥

सम सीतल नहिं त्यागहिं नीती। सरल सुभाउ सबहि सन प्रीति॥


अर्थ  

रामायण की इस चौपाई में तुलसीदासजी भगवान राम के गुणों की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि आप साकार और निराकार दोनों है। आपका तेज सूर्य के प्रकाश के समान अज्ञान रूपी अंधकार का नाश करता है। आप हमेशा ही अपने भक्तों  के मन में रहते हैं।


संदेश

हमें सच्चे ज्ञान से अपने अंदर भगवान समान गुणों का विकास करना चाहिए।

 
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