वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्॥
यहाँ उपस्थित सभी माननीय जनो को मेरा नमस्कार!
आज मुझे यह अवसर मिला है कि अपने प्रिय त्योहार कृष्ण जन्माष्टमी पर मैं आपके सामने अपने विचार रखूँ।
यह त्योहार भगवान कृष्ण के जन्म के उपलक्ष में मनाया जाता है, जो सबसे प्रिय हिंदू देवताओं में से एक हैं। कृष्ण को भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है, जो धर्म (सत्य) की स्थापना करने और भक्तों की रक्षा करने के लिए पृथ्वी पर आए थे। यह त्योहार हिंदू महीने भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है, जो अगस्त या सितंबर में आता है।
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चलिए, मैं आपको भगवान कृष्ण के जन्म की कहानी सुनाता/सुनाती हूँ।
बहुत समय पहले, मथुरा नामक एक सुंदर नगर में एक क्रूर राजा कंस रहता था। जब उसकी बहन देवकी का विवाह राजकुमार वसुदेव से हुआ, तभी एक भविष्यवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र, कंस को उसके बुरे कर्मों की सज़ा देगा। इस भविष्यवाणी से डरकर और क्रोधित होकर, कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में बंद कर दिया।
स्वयं भगवान विष्णु, देवकी और वसुदेव के पुत्र के रूप में पृथ्वी पर आए। बालकृष्ण को कंस से सुरक्षित रखने के लिए, वासुदेव उन्हें यमुना नदी के पार एक दूसरे गाँव गोकुल ले गए। गोकुल में यशोदा और नंद ने बड़े प्यार से कृष्ण का पालन-पोषण किया।
कृष्ण बहुत ही नटखट और चंचल थे, लेकिन उन्होंने कई साहस से भरे अद्भुत काम भी किए। कृष्ण ने कई राक्षसों से लड़ाई की और अपने गाँववालों की रक्षा की। बड़े होने पर, कृष्ण मथुरा लौटे और उन्होंने कंस को उसके बुरे कर्मों की सजा दी।
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इस शुभ दिन पर, भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाने के लिए विशेष तैयारियाँ की जाती हैं। मंदिरों और घरों में, झूलों को फूल पत्तियों से सजाया जाता है और बाल कृष्ण की मूर्ति को झूले पर रखकर उनका सम्मान किया जाता है। कृष्ण के बचपन की लीलाओं और उनके बुद्धिमत्ता और साहस भरे कार्यों का प्रदर्शन करने के लिए विशेष झाँकियाँ निकाली जाती हैं। छोटे बच्चे कृष्ण और राधा की तरह तैयार होकर कृष्ण लीलाएँ दिखाते हैं जो बहुत ही मनमोहक लगता है।
जैसे कृष्ण के माता-पिता वसुदेव और देवकी ने उनके जन्म के दिन उपवास किया था, वैसे ही लोग जन्माष्टमी के दिन उपवास कर अपने प्रिय कृष्ण का इंतज़ार करते हैं।
पूरे देश में दही हांडी कार्यक्रम का एक विशेष उत्साह देखने को मिलता है। इस कार्यक्रम में बच्चे और युवा मानव पिरामिड बनाकर दही या मक्खन से भरे मटके (हांडी) को तोड़ते हैं, जो बालकृष्ण की नटखट और चंचल प्रकृति को दर्शाता है।
जन्माष्टमी आनंद और उत्सव के अवसर के साथ-साथ कृष्ण के उपदेशों को समझने का भी समय है, जो भगवद गीता में लिखित हैं। कृष्ण अर्जुन को निष्काम कर्म के बारे में समझाते हैं, यानी निःस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्य का पालन करना। कृष्ण यह बताते हैं कि हमारा अधिकार केवल अपने कर्म पर है, उसके परिणाम पर नहीं।
भगवद गीता में, कृष्ण हमें सही जीवन जीने और भगवान को पाने का रास्ता बताते हैं। वह हमें सिखाते हैं कि सच्चे ज्ञान, भगवान की भक्ति और सही कर्म से हम भगवान को पा सकते हैं।
जन्माष्टमी हमें साहस, प्रेम और हमेशा सही काम करने की सीख देता है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि अच्छाई हमेशा बुराई से जीतती है। जन्माष्टमी का त्योहार हमें कृष्ण की अर्थपूर्ण शिक्षाओं को अपनाने और सही जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।
आप सबको जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ-कामनाएँ!
धन्यवाद
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