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भगवान महावीर की शिक्षाएँ (Teachings of Bhagwan Mahavira in Hindi)



Teachings of Bhagwan Mahavira

भगवान महावीर जैन धर्म के चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर थे। उनका जन्म चैत्र मास के अर्द्धचंद्र के तेरहवें दिन 599 BCE पूर्व में हुआ था। यह दिन मार्च/अप्रैल में आता है और उनके जन्मदिन को महावीर जयंती के रूप में मनाया जाता है। उनके माता-पिता राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला थे, जिन्होंने उनका नाम पहले वर्धमान रखा था, जिसका अर्थ है "जो बढ़ता है" या "जो उन्नति करता है।"


भगवान महावीर का जन्म एक राजसी परिवार में हुआ था, और उन्होंने सुख-सुविधा से भरा जीवन जिया। लेकिन बचपन से ही उनका झुकाव आध्यात्म की ओर था। 30 वर्ष की आयु में भगवान महावीर ने अपना राजसी जीवन, धन और परिवार त्यागकर आध्यात्मिक ज्ञान और विकास का मार्ग चुना।


myNachiketa बच्चों के लिए भगवान महावीर की कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएँ प्रस्तुत करता है, ताकि वे दया, ईमानदारी और सभी जीवों के प्रति सम्मान का महत्व समझ सकें।


1. अहिंसा: अहिंसा जीवन का मूल सिद्धांत है

भगवान महावीर ने सिखाया कि किसी भी जीव को शारीरिक या मानसिक रूप से नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए। उनका मानना था कि अहिंसा का पालन सभी जीवों के प्रति करना चाहिए, जैसे जानवर, पौधे या मनुष्य।


प्यारे बच्चों, हमें भी अहिंसा और करुणा का रास्ता अपनाना चाहिए। जैसे जब कोई हमें चोट पहुँचाता है तो हमें दर्द होता है, वैसे ही अन्य जीवों को भी दर्द होता है। इसलिए दयालु बनें और कभी किसी को दुख न पहुँचाएँ।


Teachings of Bhagwan Mahavira 1

2.   सत्य: सच्चाई के साथ जीवन जीना

भगवान महावीर ने सिखाया कि हमें हमेशा सच के रास्ते पर चलना चाहिए। सत्य का पालन करने से हमें विनम्र बने रहने में मदद मिलती है। सत्य हमें सही निर्णय लेने में मदद करता है जिससे हमें शांति मिलती है और हमारे चारों ओर खुशी का वतावरण रहता है।


बच्चों, आपको हमेशा सच बोलना चाहिए। अगर आपसे कोई गलती हो जाए, तो डर के कारण उसे माता-पिता से छुपाना नहीं चाहिए। याद रखो, जब आप सच बोलते हो, तो सब आप पर विश्वास करते हैं और आपके जीवन में शांति और खुशी आती है।


Teachings of Bhagwan Mahavira 2

 
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3. अपरिग्रह: लोगों, स्थानों और भौतिक चीजों से जुड़ाव न रखना।

भगवान महावीर ने सिखाया कि चीजों से लगाव रखने से हमारे बंधन और दुख बढ़ते हैं। अपरिग्रह सिखाता है कि हमें धन, लोगों और चीजों से एक अलगाव का भाव रखना चाहिए। यह सरल जीवन जीने और शांति पाने में मदद करता है। अपरिग्रह का मतलब है ज़रूरत से ज़्यादा चीजों को न रखना और जो हमारे पास है उसी में खुश रहना।


बच्चों, सोचो अगर आपका कमरा इतने खिलौनों से भरा हो कि आप हिल भी न सको! ऐसे में खेलना कितना मुश्किल हो जाएगा, है ना? इसलिए हमेशा उतनी ही चीजें रखनी चाहिए, जितनी जरूरी हों। ज्यादा माँगने की बजाय, हमें दूसरों के साथ चीजें बाँटनी चाहिए।

Teachings of Bhagwan Mahavira 3

4. अस्तेय (चोरी न करना): चोरी से कोई भी चीज न लेना

भगवान महावीर ने सिखाया कि हमें सिर्फ वही लेना चाहिए जो कोई अपनी इच्छा से हमें दे। अगर हमें कुछ पसंद है, तो बिना अनुमति के लेने की बजाय विनम्रता से माँगना चाहिए। अस्तेय का अभ्यास करने से हमारे रिश्तों में विश्वास, ईमानदारी और सम्मान बढ़ता है। यह हमें सिखाता है कि जो हमारे पास है, उसी में खुश रहना चाहिए और दूसरों की भावनाओं और चीजों का भी ख्याल रखना चाहिए।


प्यारे बच्चों, सोचो कि अगर कोई आपसे पूछे बिना आपका पसंदीदा खिलौना ले ले - तो आपको अच्छा नहीं लगेगा, है ना? जैसे हम चाहते हैं कि दूसरे हमारी चीज़ों का सम्मान करें, वैसे ही हमें भी दूसरों की चीज़ों का सम्मान करना चाहिए।

Teachings of Bhagwan Mahavira 4

5. ब्रह्मचर्य: अनुशासित जीवन जीना


भगवान महावीर ने सभी को शुद्ध और अनुशासित जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने सिखाया कि हमें अपने विचारों, शब्दों और कर्मों पर नियंत्रण रखना चाहिए और दया व अच्छाई के रास्ते पर चलना चाहिए। इसका मतलब यह भी है कि बुरी आदतों से दूसरों को नुकसान न पहुँचाएँ और अपने दिल और मन को साफ रखें।

बच्चो, हमें अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए और चॉकलेट, आइसक्रीम और खिलौने जैसी चीजों के लिए जिद्द नहीं करनी चाहिए। बल्कि हमें मज़बूत बनना चाहिए और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

 
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 6. संतुलित जीवन जीना

भगवान महावीर ने सिखाया कि चीज़ों का आनंद संतुलन में लेना अच्छा होता है, बिना किसी चीज़ को अधिक या कम किए। उन्होंने कहा कि अपनी ऊर्जा को समझदारी से इस्तेमाल करना चाहिए। हमें अपना पूरा ध्यान मजबूत, समझदार और दयालु बनने में लगाना चाहिए। जब हम अपना समय और ऊर्जा नई चीज़ें सीखने, खेल खेलने और दूसरों की मदद करने में लगाते हैं, तो हम खुश और स्वस्थ महसूस करते हैं।


बच्चों, जब आप ज़्यादा मिठाइयाँ खाते हो — तो शुरुआत में तो अच्छा लगता है, लेकिन बाद में आप बीमार हो सकते हो। इसलिए जीवन को संतुलित तरीके से जीने की कोशिश करो, क्योंकि कोई भी चीज़ अगर ज़रूरत से ज़्यादा हो तो नुकसानदायक होती है।


Teachings of Bhagwan Mahavira 5

7. सही धारणा (सम्यक-दर्शन), सही ज्ञान (सम्यक-ज्ञान), और सही आचरण (सम्यक चरित्र) - स्वयं को जानने के मार्ग हैं


सही दृष्टि (सम्यक-दर्शन) का मतलब है चीज़ों को साफ़-साफ़ देखना और यह समझना कि क्या अच्छा और सही है। सही ज्ञान (सम्यक-ज्ञान) का मतलब है सत्य को जानना और यह समझना कि अच्छे फैसले कैसे लें। सही आचरण (सम्यक-चारित्र) का मतलब है सही तरीके से व्यवहार करना। जब हम सही दृष्टि से किसी चीज़ को देखते हैं, सत्य को समझते हैं और दया का भाव रखतें हैं, तो हम एक अच्छा इंसान बनने की ओर कदम बढ़ाते हैं।


तो बच्चों, सम्यक-दर्शन सही सोच से आता है, सम्यक-ज्ञान सही शिक्षा से आता है और सम्यक-चरित्र सही सोच और सही शिक्षा से आता है। जब आप इस रास्ते पर चलते हो, तो आपको शांति और खुशी मिलती है।

Teachings of Bhagwan Mahavira 6


  1. सही कर्म से सच्चा सुख मिलता है

भगवान महावीर ने सिखाया कि हर काम का परिणाम होता है, चाहे वह शरीर से किया जाए, बोलकर किया जाए, या मन से किया जाए। अच्छे काम का परिणाम अच्छा होता है और बुरे काम का बुरा।

Teachings of Bhagwan Mahavira 7

बच्चों, हुमें हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए। हमें दयालु, ईमानदार, सच्चा और अनुशासित बनकर अपने और दूसरों के जीवन को बेहतर बनाना चाहिए।

 
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