श्री रमण महर्षि एक महान भारतीय संत और दार्शनिक थे, जिन्हें उनके गहरे आध्यात्मिक ज्ञान और सरल जीवन जीने के लिए जाना जाता है। उनका असली नाम वेंकटरमन अय्यर था, लेकिन लोग उन्हें प्यार से श्री रमण महर्षि कहते थे। वह एक बुद्धिमान गुरु थे जिन्होंने अपने सरल किन्तु महत्वपुर्ण सीख द्वारा लोगों को अपने असली रूप को जानने में मदद की। उनकी बातें इतनी आसान थीं कि हर उम्र के लोग उन्हें समझ सकते थे। वे कहते थे कि हमें खुद को जानने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि असली खुशी हमारे भीतर ही है।
myNachiketa प्रस्तुत करता है बच्चों के लिए रमण महर्षि की बहुमूल्य शिक्षाएँ।
1. हम सभी आत्मा हैं, केवल शरीर नहीं
रमण महर्षि ने कहा कि हम सिर्फ अपना शरीर नहीं हैं, बल्कि खुद को जानने वाली चेतना हैं, जिसे "आत्मा" कहते हैं। शरीर बदलता रहता है, लेकिन आत्मा कभी नहीं बदलती। उन्होंने आत्मा को जानने और और खुद से सवाल पूछने, "मैं कौन हूँ?" पर बहुत जोर दिया। उनका कहना था कि अगर हम खुद से यह सवाल पूछें और अपने अंदर झाँकें, तो हमें जवाब मिल सकता है।
तो बच्चों, हमेशा अपने विचारों और कर्मों पर ध्यान दो, क्योंकि यही हमें हमारी असली पहचान करवाते हैं। हमारे विचार और कर्म बदलते रहते हैं लेकिन हमारा असली रूप कभी नहीं बदलता।
जैसे आप खेल-खेल में अलग-अलग पोशाक पहनते हो कभी फायरफाइटर की, कभी राजकुमारी की, तो कभी सुपरहीरो की। जब आप यह पोशाक पहनते हो, लोग आपको फायरफाइटर, राजकुमारी या सुपरहीरो कहते हैं। लेकिन इन सब पोशाकों के पीछे आप वही हो, आपका असली रूप नहीं बदलता।
2. शांति और खुशी हमारा सच्चा स्वभाव होता है।
रमण महर्षि ने कहा है कि हमारा असली स्वभाव शांत और खुश रहना होता है। जैसे एक झील के नीचे का हिस्सा हमेशा शांत रहता है, वैसे ही हमारा सच्चा स्वभाव शांत और खुश रहने का है, भले ही कभी-कभी हमारे विचारों में हलचल हो। हम शांत रहकर अपने अंदर की इस ख़ुशी और शांति को महसूस कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि खुशी सबसे महत्वपूर्ण भावना है, और खुश रहने के लिए हमें अपने सच्चे रूप को जानना चाहिए। इसके लिए खुद से सवाल करना ज़रूरी है।
तो बच्चों, जब भी आपको गुस्सा आए या आप दुखी या परेशान हो, तो बस यह याद रखना कि आपको केवल अपने विचारों को सही, अच्छा और सकारात्मक बनाना है। क्योंकि आपका अंदर का सच्चा स्वरूप हमेशा खुश रहता है।
3. आत्मा ही असली सच्चाई है।
आप हमेशा एक ही इंसान रहते हो, चाहे आप खेल रहे हो, पढ़ रहे हो या सो रहे हो। हमारा असली रूप हमेशा ही रहता है और कभी नहीं बदलता। यह आसमान की तरह है, जो हमेशा होता है, भले ही बादलों से ढके जाने के कारण वह दिखाई ना दे। रमण महर्षि ने कहा कि चाहे आप जाग रहे हो, सपना देख रहे हो या गहरी नींद में हो, आत्मा हमेशा उपस्थित रहती है।
बच्चों, दिन में हम आसमान में सूरज को देखते हैं, लेकिन रात में वह गायब हो जाता है। रात में सूरज दिखाई नहीं देता पर होता है। इसी तरह, हमारा सच्चा स्वरूप हमेशा मौज़ूद रहता है, चाहे हम उसे महसूस करें या न करें।
4. सादगी, खुशी और संतुष्टि लाती है।
रमण महर्षि एक साधारण व्यक्ति थे और सरल जीवन जीने में विश्वास रखते थे। उन्होंने कहा कि लोग अधिक से अधिक चीज़ें पाने की इच्छा करते हैं, हालांकि ये चीज़ें खुशी की गारंटी नहीं देतीं। उनका मानना था कि जब आप संतुष्ट होते हैं और एक सरल जीवन जीते हैं, तो आप भीतर से खुश होते हैं क्योंकि आपको भौतिक चीज़ों की ज़्यादा चिंता नहीं होती है।
प्यारे बच्चों, जब आप सादा जीवन जीना शुरू करते हो और ज्यादा खिलौनों, नए कपड़ों, नए मोबाइल, नई स्टेशनरी की माँग नहीं करते, आप साधारण भोजन भी आनंद से खाते हैं और खुश रहते हैं। इसलिए बच्चों आप सादा जीवन जीने की कोशिश करो, क्योंकि इच्छाएँ कभी खत्म नहीं होतीं और ये असंतोष पैदा करती हैं।
5. दुनिया वैसी ही होती है जैसी हम उसे देखते हैं।
रमण महर्षि ने कहा कि जिस दुनिया को हम देखते और अनुभव करते हैं वह हमारे मन की ही एक छवि होती है। जैसे, जब हम खुश होते हैं, तो यह दुनिया भी हमें खुश और मज़ेदार लगती है। लेकिन जब हम दुखी होते हैं, तो वही दुनिया उदास और उबाऊ लग सकती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम दुनिया को कैसे देखते हैं यह हमारे विचारों और भावनाओं पर निर्भर करता है। जैसे हमारे मन में जो होता है, वैसी ही दुनिया हमें दिखाई देती है।
जैसे जब हम नीले चश्मे पहनते हैं, तो दुनिया नीली दिखाई देती है, और जब हम लाल चश्मे पहनते हैं, तो दुनिया लाल दिखाई देती है। हम ध्यान लगाकर और अपनी सांसों को नियंत्रित करके हम अपने मन को संयम में कर सकते हैं और खुश रह सकते हैं।
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6. आत्मा ही सच्ची गुरु है।
रामण महर्षि ने कहा है कि आत्मा ही सच्ची गुरु है, जो हमारी जिंदगी की सबसे बड़ी मार्गदर्शक है। लेकिन हमें अपने भीतर के गुरु तक पहुँचने के लिए एक बहरी शिक्षक की ज़रूरत होती है। हमें अपने अंदर के सच्चे गुरु को ढूँढने के लिए ईमानदारी और मेहनत के साथ प्रयास करना होता है। एक काबिल शिक्षक के मार्गदर्शन और अपनी जिज्ञासा से, हम अपने असली रूप (आत्मा) को जान सकते हैं।
इसलिए बच्चों, हमेशा अपने गुरु का सम्मान करो और उनकी बात सुनो क्योंकि वे आपको अपने आप से जुड़ने में मदद करते हैं। साथ ही, हमेशा याद रखना कि आपकी आत्मा ही आपकी सबसे बड़ी शिक्षक है क्योंकि वह हमेशा आपको सही रास्ता दिखती है।
7. स्तुति, जप, ध्यान, योग और ज्ञान खुद को जानने के मार्ग हैं
स्तुति (प्रार्थना) भगवान के सम्मान में पूरी श्रद्धा से भजन गाने को कहते हैं, और जाप (मंत्र उच्चारण) का अर्थ है मन ही मन भगवान नाम दोहराना या मुख से बोलना। रामण महर्षि ने कहा था कि ये दोनों तरीके मन को केंद्रित करने में मदद करते हैं। ध्यान का अर्थ है भगवान पर श्रद्धा से अपना मन केंद्रित करना और अपने विचारों को काबू करना। योग मन को शांति देने का अभ्यास है, जिसमें सांसों पर नियंत्रण किया जाता है। ज्ञान वह अवस्था है जब हम अपने असली रूप को जान जाते हैं, और हमारा मन पूरी तरह से शांत हो जाता है।
रमण महर्षि ने कहा था कि हम इन सभी तरीकों में से कोई भी तरीका या सभी तरीके अपना कर मन को शांत कर सकते हैं । जब मन शांत होता है, तब हमें अपने असली रूप का ज्ञान होता है।
इसलिए, बच्चों, आपको ईश्वर के साथ जुड़ने का प्रयास करना चाहिए और ज्ञान प्राप्त करना चाहिए जो आपको खुद को पहचानने में मदद करे। जब आप खुद को जान लेते हो, आप खुश, संतुष्ट और शांत रहते हो।
अनासक्ति (detachment) और समर्पण
रमण महर्षि ने कहा था कि भगवान के प्रति समर्पण का मतलब है अपने अहंकार को छोड़ देना। उन्होंने सिखाया कि शरीर, मन, चीज़ों और रिश्तों से जुड़ाव हमारे अहंकार को बढ़ता है, और यही अहंकार हमें दुखी करता है। अनासक्ति एक ऐसी अवस्था है, जहाँ इंसान दुनिया की खुशियों और दुखों से प्रभावित नहीं होता। महर्षि रमण ने बताया कि असली समर्पण तब होता है जब हम अपने अहंकार को भगवान को समर्पित कर देते हैं।
प्यारे बच्चों, क्या आपने कभी रेत को अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़ने की कोशिश की है। रेत फिसल जाती है, है ना? लेकिन अगर आप इसे धीरे से अपनी हथेली में पकड़ें तो यह रुक जाती है। अनासक्ति ऐसी ही है—इसका मतलब है कि जो आपके पास है उससे बहुत ज़्यादा लगाव रखे बिना उसका आनंद लेना।
जो तालाब लहरों से भरा होता है, उसमें आकाश को साफ़-साफ़ तरीके से नहीं दिखाता। लेकिन जब लहरें शांत हो जाती हैं, तब वह तालाब आकाश का सुंदर रूप दिखाता है। वैसे ही, जब हम अपने अहंकार से मुक्त हो जाते हैं, तो हमारा मन शांत हो जाता है और भीतर की शांति को महसूस करता है।
बच्चों, रामण महर्षि की इन शिक्षाओं को अपनाकर आप शांत और बुद्धिमान बन सकते हो। आप सीखते हो कि जीवन के सवालों का जवाब पाने के लिए अपने भीतर देखना चाहिए। आप भी खुद को जानने का अभ्यास कर के अपने असली स्वरूप को जान सकते हो।
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