भगवद् गीता 700 श्लोकों का एक हिंदू धर्मग्रंथ है जो भारत के महाकाव्य महाभारत का हिस्सा है। यह भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ एक संवाद है। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को एक सारथी और मार्गदर्शक के रूप में गीता का ज्ञान दिया था। श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान कुरुक्षेत्र के युद्ध भूमि पर दिया था, जहाँ अर्जुन अपने परिवार और गुरुओं के खिलाफ युद्ध करने को लेकर दुविधा में थे। गीता जीवन के मूल सवालों के बारे में सीख देती है जैसे, सही जीवन जीना और अपने कर्तव्य का पालन करना।
myNachiketa प्रस्तुत कर्ता हैं बच्चों के लिए भगवद् गीता की 10 महत्वपूर्ण शिक्षाएँ
शरीर से बढ़कर आत्मा है
श्री कृष्ण कहते हैं: शारीरिक शरीर नाशवान होता है, लेकिन आत्मा अविनाशी होती है। आत्मा को नष्ट नहीं किया जा सकता, आग इसे जला नहीं सकती, पानी गीला नहीं कर सकता और हवा इसे सुखा नहीं सकती।
अपना कर्तव्य निभाओ
श्री कृष्ण कहते हैं: हमें परिणाम की चिंता किए बिना निःस्वार्थ भाव से अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। हमें अपने काम पर ध्यान देना चाहिए उसके परिणाम पर नहीं। इससे जीवन में शांति और सही उद्देश्य मिलता है। हम सभी को अपने सभी कर्तव्य पूरे करने चाहिए।
निःस्वार्थ कर्म (निष्काम कर्म)
श्री कृष्ण कहते हैं कि सभी को अपनी इच्छाओं और कामनाओं से ऊपर उठकर काम करना चाहिए। सभी को अपने कर्तव्य को निष्ठा से निभाना चाहिए, केवल प्रयास पर ध्यान देना चाहिए और परिणाम भगवान पर छोड़ देना चाहिए। कोई भी काम इसलिये करना चाहिए क्योंकि वे नैतिक और सही हैं, न कि निजी लाभ के लिए।
ईश्वर के प्रति सम्पूर्ण भक्ति और समर्पण
भक्ति का मार्ग भगवान से जुड़ने का सीधा रास्ता है: भक्ति का मतलब है भगवान के लिए गहरा प्रेम, जबकि समर्पण का मतलब है विनम्रता और विश्वास के साथ भगवान की इच्छा को स्वीकार करना। समर्पण का मतलब है चिंता को छोड़ देना और यह विश्वास करना कि भगवान का मार्गदर्शन हमेशा सही है, चाहे जीवन अनिश्चित या कठिन क्यों न लगे।
भगवान हर जगह हैं
भगवद गीता में कृष्ण हमे समझाते हैं कि इस संसार की हर एक चीज़ भगवान का ही रूप है। पहाड़, नदी, पेड़, पशु, सबमे भगवान बसते हैं। इसलिए हमे सबका सम्मान करना चाहिए और किसी को भी खुद से छोटा नहीं समझना चाहिए।
अहंकार को दूर करो
श्री कृष्ण कहते हैं: अहंकार वह भावना है जो "मैं" या "मेरा" की पहचान बनाती है जिससे हम खुद को संसार से अलग समझते हैं। अहंकार का भाव झूठी कामनाओं से आता है। अहंकार को दूर करने के लिए, हमें विनम्रता का अभ्यास करना चाहिए—यह समझते हुए कि हम दूसरों से न तो बड़े हैं, न ही छोटे।
ज्ञान, भक्ति और कर्म - भगवान तक पहुँचने के रास्ते हैं
श्री कृष्ण कहते हैं : ज्ञान योग (ज्ञान), भक्ति योग (भक्ति), और कर्म योग (निःस्वार्थ कार्य) हमें भगवान की ओर ले जाने वाले रास्ते हैं।
ज्ञान योग : ज्ञान का रास्ता हमें हमारी असली पहचान बताता है और हमें सच और भगवान तक पहुँचने में मदद करता है।
भक्ति योग : यह भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण का रास्ता है। यह भगवान के से जुड़ने, उन्हें सभी चीजों में देखने और अपने सभी कार्यों को भगवान को समर्पित करने के बारे में है।
कर्म योग : यह मार्अ हमें अपने कर्तव्यों को बिना किसी फल की चिंता किए करने पर जोर देता है। कर्म योग यह सिखाता है कि कार्य को निःस्वार्थ भाव से किया जाना चाहिए, बिना किसी पुरस्कार या पहचान की चाह के।
प्रकृति के गुण
श्री कृष्ण कहते हैं कि जीवन पर तीन गुणों का प्रभाव होता है—सत्त्व, रजस, और तमस। हमें सत्त्व गुण को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि हम साफ़ मन, बुद्धिमान और शांत रह सकें।
सत्त्व गुण: शुद्धता, ज्ञान, शांति और संतुलन से जुड़ा है। यह मन को साफ़, समझदार और जीवन में संतुलन बनाने में मदद करता है।
रजस गुण: काम, जुनून और इच्छा से जुड़ा है। यह हमें मेहनत करने, सफलता पाने और आनंद अनुभव करने के लिए प्रेरित करता है।
तमस अंधकार और अज्ञानता का गुण है। यह आलस्य, भ्रम और माया से जुड़ा होता है। जब तमस प्रबल होता है, तो व्यक्ति ज्ञान और सत्य से दूर हो जाता है।
भगवान हमारे अंदर हैं
श्री कृष्ण कहते हैं: हर जीव भगवान का ही रूप है। सही ज्ञान से हम अपने असली रूप को जान सकते हैं जो शुद्ध और सुंदर है। गीता सिखाती है कि सही ज्ञान, ध्यान और अनुशासन से हम अपने अंदर के भगवान तक पहुँच सकते हैं।
हर स्थिति में शांत रहना
श्री कृष्ण कहते हैं: जब हम अपने कर्मों के परिणाम से जुड़ जाते हैं, तो सफलता मिलने पर बहुत खुश होते हैं और असफलता पर निराश हो जाते हैं। गीता हमें सिखाती है कि हमें न तो सफलता से अत्यधिक खुश होना चाहिए और न ही असफलता से परेशान, क्योंकि दोनों ही अस्थायी हैं। असली महत्व काम पूरा करने में किए गए प्रयास का है, न कि परिणाम का। हमें अच्छे और बुरे समय में एक समान रहने का प्रयास करना चाहिए।
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