तुलसीदास भारत में एक प्रसिद्ध कवि और संत थे जिन्होंने महाकाव्य "रामचरितमानस" लिखा। उनका जन्म 16वीं सदी में हुआ था और उन्होंने अपना जीवन भगवान राम की पूजा में समर्पित किया। तुलसीदास के दोहे उनकी भक्ति, सरलता और नैतिक शिक्षाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके दोहों के आध्यात्मिक संदेश लोगों को सही जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। myNachiketa प्रस्तुत करता है बच्चों के लिए तुलसीदास के 10 प्रमुख दोहे सरल अर्थ और प्रभावी संदेश के साथ ।
1. दोहा
बिनु हरि कृपा मिलहिं नहीं संता।
काहुं को बहु विधि करहिं यता।।
अर्थ
तुलसीदासजी कहते हैं कि भगवान की कृपा के बिना, कोई संत नहीं मिल सकता, भले ही कोई कितने भी तरीकों से प्रयास करे।
संदेश
हमें हमारे शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए क्योंकि अच्छे शिक्षक हमें भगवान की कृपा से ही मिलते हैं।
2. दोहा
सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा॥
अगुन अरूप अलख अज जोई। भगत प्रेम बस सगुन सो होई॥
अर्थ
तुलसीदासजी कहते हैं कि ज्ञानियों और वेद पुराणों के अनुसार भगवान के सगुन और निर्गुण रूप में कोई अंतर नहीं है। भगवान का कोई रूप या आकर नहीं है पर वह अपने भक्तों के प्रेम के कारण अलग-अलग रूप लेते हैं।
संदेश
बच्चों, हम जानते हैं कि पानी का रूप या रंग नहीं होता, हम पानी को जिस बर्तन में डालते हैं वह उसी का आकर ले लेता है, उसमें जो रंग डालें उसी रंग का हो जाता है। इसी तरह भगवान का भी कोई रूप-रंग नहीं होता हम उन्हें जिस रूप में देखना चाहें वह वैसा ही रूप ले लेते हैं।
इन दोहों को और गहराई से समझने के लिए पढ़ें हमारी यह विशेष किताब।
3. दोहा
तुलसी काया खेत है, मनसा भयौ किसान।
पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान।।
अर्थ
तुलसीदासजी कहते हैं कि शरीर एक खेत है, और मन किसान है। अच्छे और बुरे कर्म दो बीज के समान हैं; हम जो बोएँगे वही पाएँगे। अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो हमें अच्छा फल मिलेगा और बुरे कर्म करेंगे तो बुरा।
संदेश
यदि हम किसी भी खेल को सीखने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे, तो हम उसमें बेहतर हो जाएँग। अगर हम प्रैक्टिस नहीं करेंगे, तो हम कभी भी चैम्पियन नहीं बनेंगे।
4. दोहा
तुलसी साथी विपति के, विद्या, विनय, विवेक।
साहस, सुकृत, सुसत्य-व्रत, राम-भरोसो एक॥
अर्थ
तुलसीदासजी कहते हैं कि एक व्यक्ति के कठिन समय में ज्ञान, विनम्रता, बुद्धि, साहस, अच्छे कर्म, और सत्य वचन ही उसकी सहायता करते हैं। ये सारे गुण हमें भगवान पर विश्वास करने से मिलते हैं।
संदेश
कभी-कभी हमारी पढ़ाई में समस्याएँ आती हैं या किसी प्रोजेक्ट को पूरा करना मुश्किल होता है। उन स्थितियों में, हमें भगवान में विश्वास रखना चाहिए और ईमानदारी और दृढ़ता से काम करना चाहिए।
इन दोहों को गहराई से समझने के लिए यह वीडियो देखें।
5. दोहा
सीता संग रघुनाथ हैं, लखन सहित वानर गण।
तुलसी के जीवन खिले, सच्चिदानंद रमण।।
अर्थ
सीता के साथ भगवान श्री राम हैं, और उनके साथ लक्ष्मण तथा वानरों की सेना भी है। तुलसीदासजी भगवान के सच्चिदानंद रूप का दर्शन कर के बहुत खुश हैं।
संदेश
हमारे दोस्तों और माता-पिता के आसपास होने से हम खुशी महसूस करते हैं, उसी तरह भगवान का होना हमारे जीवन को खुशियों से भर देता है।
6. दोहा
सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि।
सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि।।
अर्थ
तुलसीदासजी कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने अच्छे मित्र, गुरु या स्वामी की बात नहीं मानता, वह बाद में पछताता है और उसे दुख और नुकसान भी होता है।
संदेश
हमें अपने माता-पिता और शिक्षकों की बात माननी चाहिए क्योंकि वे हमेशा हमारा भला चाहते हैं। अगर हम अपने माता-पिता और शिक्षकों का कहना नहीं मानेंगे तो हो सकता है हम मुश्किल में पड़ जाएँ।
इन दोहों को और गहराई से समझने के लिए पढ़ें हमारी यह विशेष किताब।
7. दोहा
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए।
अनहोनी होनी नहीं, होनी हो सो होए।।
अर्थ
तुलसीदासजी कहते हैं कि जो व्यक्ति भगवान पर भरोसा करता है, वह हमेशा बेफ़िक्र रहता है। उसे यह विश्वास रहता है कि भगवान जो करेंगे अच्छा ही करेंगे।
संदेश
कभी-कभी हमें चिंता होती है कि हम अपनी परीक्षा या खेल प्रतियोगिता में कैसा प्रदर्शन करेंगे। पर अगर हमारी तैयारी अच्छी है तो हमें भगवान पर भरोसा रखना चाहिए कि हमारे साथ जो होगा वह अच्छा ही होगा।
8. दोहा
लसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन।
अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन।।
अर्थ
तुलसीदासजी कहते हैं कि बारिश के मौसम में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी अधिक हो जाती है कि कोयल की मीठी बोली उस कोलाहल में दब जाती है। इसलिए कोयल मौन धारण कर लेती है। यानि जब अज्ञानी व्यक्ति अपनी मूर्खता दिखता है तब ज्ञानी को चुप रहना चाहिए और सही समय आने पर ही अपना ज्ञान दिखाना चाहिए।
संदेश
कभी-कभी हमारे दोस्त खुद को सही साबित करने के लिए बहुत ऊँची आवाज़ में बोलते हैं गलत तर्क देते हैं। ऐसे में हमें शांत रहना चाहिए और सही समय आने पर ही अपनी बात कहनी चाहिए।
9. दोहा
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण।।
अर्थ
तुलसीदासजी कहते हैं कि मनुष्य को दया कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि दया ही सभी अच्छे कर्मों का आधार है और अहंकार सभी बुराइयों का कारण होता है।
संदेश
अगर हमारे दोस्त कभी किसी मुश्किल में पड़ जाएँ जैसे कोई गणित का सवाल हल करना उनके लिए मुश्किल हो रहा हो या किसी खेल को सीखने में उन्हें कठिनाई हो रही हो तो ऐसे में हमें हमेशा अपने दोस्तों की मदद करनी चाहिए और इस बात पर कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए।
10. दोहा
राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस।
बरषत वारिद-बूँद गहि, चाहत चढ़न अकास॥
अर्थ
तुलसीदासजी यहाँ कहना चाहते हैं कि जैसे पानी की बूँदों को पकड़ कर कोई आकाश में नहीं चढ़ सकता, वैसे ही भगवान की मदद और आशीर्वाद के बिना कोई भी सच्चे लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकता।
संदेश
हमें अपने लक्ष्य को पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए और साथ ही भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें सफलता दें। अगर आप एक अच्छे खिलाड़ी बनना चाहते हैं तो आपको भगवान पर विश्वास रखते हुए रोज़ अभ्यास करना चाहिए।
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