आदय वाल्मीकए नमो नमः
Aadaye Valmikaye Namo Namah
"आदि कवि" या प्रथम कवि वाल्मीकि को बारम्बार प्रणाम।"
वाल्मीकि जयंती अश्विन महीने (सितंबर-अक्टूबर) की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। उनके सम्मान में अश्विन महीने (सितंबर-अक्टूबर) की पूर्णिमा के दिन वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है।
myNachiketa वाल्मीकि जयंती के पावन अवसर पर महर्षि वाल्मीकि जी के बारे में कुछ जानकारी प्रस्तुत करता है।
वाल्मीकि जी भारत के एक महान ऋषि और पहले कवि थे जिन्हें पहले या आदि कवि के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने प्रमुख हिन्दू ग्रंथ रामायण की रचना की थी, जो एक प्रसिद्ध महाकाव्य है। वाल्मीकिजी की जीवन कथा स्वयं को जानने और भगवान को पाने की एक प्रेरणादायक कहानी है।
वाल्मीकि जी का असली नाम रत्नाकर था और अपने जीवन के शुरूआती दिनों में वे लोगों को लूटकर अपना जीवनयापन करते थे। एक दिन, सात ऋषि एक जंगल से गुजर रहे थ, रत्नाकर ने उन्हें देखा, औरउन्हें लूटने का निश्चय किया। लेकिन जब वे उनके पास पहुँचे, तो ऋषियों ने कहा कि उनके पास कोई धन नहीं है। एक ऋषि ने रत्नाकर से पूछा कि वह लोगों को लूटते क्यों हैं। रत्नाकर ने बताया कि वह अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए यह काम करते हैं। यह सुनकर ऋषि ने उनसे कहा कि वे अपने परिवार से पूछें कि जिस तरह वे लूट के धन का हिस्सा लेते हैं क्या उसी तरह उनके पाप के भी भागीदार बनेंगे। रत्नाकर की पत्नी और उनके बच्चो ने उनके पाप का हिस्सा लेने से मना कर दिया।
इस बात का रत्नाकर पर गहरा असर हुआ। उन्होंने ऋषि से सही रास्ता दिखाने की प्रार्थना की। ऋषि ने रत्नाकर से "मरा" शब्द का जाप करने के लिए कहा। रत्नाकर ने कई सालों तक पूरी श्रद्धा और त्याग के साथ "मरा" का जाप किया। उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि धीरे-धीरे उन्हें इस सत्य का पता चला कि "मरा" का उल्टा "राम" होता है।
कई वर्षों बाद जब वही ऋषि फिर से उसी जंगल से गुज़रे, तो उन्होंने "राम" की ध्वनि सुनी। उन्होंने देखा कि यह ध्वनि एक चींटियों के ढेर से आ रही थी। जब उन्होंने चींटियों का ढेर हटाया, तो उन्होंने रत्नाकर को देखा, और तभी से उन्होंने उनका नाम "वाल्मीकि" रख दिया।
संस्कृत में "वाल्मीकि" का अर्थ है "चींटियों का ढेर"। ऋषियों ने उन्हें महान कवियों में से एक बनने का आशीर्वाद दिया। इसके बाद, वाल्मीकिजी को अपने ज्ञान और भक्ति के कारण सबका सम्मान मिला और वह एक महान ऋषि के रूप में पूजे गए।
एक दिन नारद मुनि वाल्मीकि जी के आश्रम में आए। उन्होंने प्रभु श्री राम की कथा वाल्मीकि जी को सुनाई और उन्हें इसे एक कविता के रूप लिखने के लिए कहा। फिर एक दिन स्वयं भगवान ब्रह्मा वाल्मीकि जी के आश्रम में आए। उन्होंने भी वाल्मीकि जी से कहा कि वे प्रभु श्री राम की कथा लिखें और उन घटनाओं को भी लिखें जिनके बारे में वे नहीं जानते। वाल्मीकि जी ने अपनी ध्यान की शक्ति से भगवान राम के जीवन की हर घटना को ऐसे देखा जैसे वह उनके सामने हो रही हो।
इसके बाद, वाल्मीकिजी ने रामायण महाकाव्य की रचना की। रामायण अयोध्या के राजकुमार श्रीराम के जीवन की कथा है, जो सभी को उनकी तरह सत्य एवं धर्म की राह पर चलने की प्रेरणा देती है। रामायण में लगभग 24,000 श्लोक हैं, जो सात कांडों में विभाजित हैं। रामायण केवल भगवान राम की कथा नहीं कहती, बल्कि यह धर्म, भक्ति, प्रेम और अच्छाई की बुराई पर जीत के महत्व को भी समझाती है।
रामायण लोगों को भगवान राम के मूल्यों पर चलने और एक सच्चाई भरा जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है। इसका कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है और इसपे कई नाटक और टेलीविजन कार्यकर्म भी बने हैं। यह भगवान राम की कहानी है जिसमें उन्होंने 14 वर्षों का वनवास स्वीकार किया और एक आज्ञाकारी पुत्र होने का धर्म निभाया। अपनी पत्नी देवी सीता को लंका से मुक्त कर उनके प्रति अपना कर्तव्य निभाया, और सुग्रीव की मदद कर एक सच्चे मित्र का कर्तव्य निभाया। हमें भी अपने सभी कर्तव्य पूरी सच्चाई और ईमानदारी से पूरे करने चाहिए।
वाल्मीकिजी ने भी रामायण की घटनाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जब देवी सीता वाल्मीकिजी के आश्रम में रह रही थीं, तब उन्होंने भगवान राम के जुड़वां पुत्रों, लव और कुश को जन्म दिया। वाल्मीकि जी ने लव और कुश का पालन-पोषण किया और उन्हें शिक्षा दी। वाल्मीकिजी के आश्रम में ही लव और कुश ने रामायण सीखी और बाद में भगवान राम के सामने गया उसका गान किया।
वाल्मीकि जी की कथा से हम यह सीखते हैं कि कोई भी जन्म से अच्छा या बुरा नहीं होता, हमारे कर्म ही हमें अच्छा या बुरा बनाते हैं।
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